संदेश

सूर्य तत्त्व तंत्र विवेचना

चित्र
मैने सूर्य के १०८ नामों से हवन किया। पूर्वकाल में भगवान् कृष्ण ने इन १०८ नामों से सूर्य का स्तवन किया था। सूर्य को नमस्कार करने से ऐहिक एवं स्वर्गीय सभी लाभ निश्चित रूप से प्राप्त होते हैं। अतः हम प्रतिदिन सूर्य को क्यों न नमन करें ?  आदित्य, भास्कर, भानु, रवि, सूर्य, दिवाकर, प्रभाकर, दिवानाय तपन, वचनानांश्रेष्ठ, वरेण्य, वरद, विष्णु अना, वासवानुज, बल, वीर्य, सहस्रांश सहस्रकिरणद्युति, मयूखमाली, विश्व, मार्तण्ड, चण्डकिरण, सदागति भास्वान्, सप्ताश्व, सुखोदय, देवदेव, अहिर्बुध्य, धामनिधि, अनुत्तम, तप, ब्रह्ममयालोक, लोकपाल, अपाम्पति, जगत्यबोधक, देव, जगद्वीप, जगत्, अर्क, निश्रेयस पर, कारण, श्रेयसापर, इन प्रभावी, पुण्य, पतंग, पतंगेश्वर मनोवाञ्छितदाता दृश्फलप्रद अदृष्टफलमद, मह, महकर, हंस, हरिदश्य, हुताशन, मंगल्य, मंगल, मेध्य, ध्रुव, धर्मप्रबोधन, भव, सम्भावित, भाव, भूतभव्य, भवात्मक, दुर्गम, दुर्गविहार, हरनेत्र, श्यीमय, त्रैलोक्यतिलक तीर्थ, तरणि, सर्वतोमुख, तेजोराशि, सुनिर्वाण, विश्वेश, शाश्वत, धाम, कल्प, कल्पानल, काल, कालचक्र, क्रतुप्रिय, भूषण, मरुत्, सूर्य, मणिरत्न, सुलोचन, त्वष्टा,

विष्णु के अतिरिक्त अन्य कोई सत्ता नहीं

√•विष्णु के अतिरिक्त अन्य कोई सत्ता नहीं है। इस अद्वितीय विष्णु की गन्ध से सुवासित बुद्धि से मैं श्री महाराज जी को प्रणाम करता हूँ। विष्णु का नाम सम्पर है। इसलिये संसार बुद्धि से विष्णु का चिन्तन करता हूँ। संसार क्या है ? कैसा है ? कहाँ है ? कब है ? संसार संबंधी इन चार प्रश्नों का उत्तर है, किन्तु संसार क्यों है ? इसका उत्तर नहीं है। संसार है, यह सत्य है। संसार की सत्ता है, इसलिये इसका नाम भूः है। भुवे नमः। √•जो व्यक्ति है, वही संसार है। जैसा व्यक्ति है, वैसा संसार है। जहाँ व्यक्ति है, वहीं संसार है। जब तक व्यक्ति है, तब तक संसार है। दो संसार हैं-भीदर का संसार, बाहर का संसार दोनों सत्य हैं। जितने व्यक्ति है, उतने संसार है। यह भी सत्य है। संसार में १४ भुवन हैं। व्यक्ति के भीतर (देह में) १४ भुवन हैं। इन १४ भुवनों को करण कहते हैं। एक कारण ही १४ करणों के रूप में व्यक्त हो रहा है। इनमें ४ अन्तःकरण एवं १० बहिकरण हैं। मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार- ये चार अन्तःकरण है। √•१. मन = संकल्प विकल्प करने वालो वृत्ति।  √•२. बुद्धि = निर्णय करने वाली शक्ति ।  √•३. चित्त = चिन्तन / वैचारिक क्षमता ।  √•४. अह

ज्योतिष मे मृत्यु जीव आयु तंत्र दर्शन

√•सरलता एवं शान्ति की मूर्ति श्री महाराज जी का मैं प्रणाम से अभिषेक करता हूँ।  √•पुरुष को कुण्डली में सप्तम भाव स्त्री है। सप्तम से पञ्चम अर्थात् एकादश स्थान स्त्री का उदर है। उदर में गर्भाशय होता है। अतः एकादश को स्त्री का गर्भ कहते हैं। पञ्चम स्थान पुत्र है। यह एकादश को देखता है। अतः पुत्र को स्त्री के गर्भ की अपेक्षा है। यह सत्य है। पुरुष की कुण्डली में पञ्चम स्थान शुभ है, एकादश अशुभ, तो पुत्र सुख बाधित होता है। ऐसे ही यदि पञ्चम अशुभ है तथा एकादश शुभ तो पुत्र योग को खण्डित समझना चाहिये। स्त्री की कुण्डली में पञ्चम उस का उदर / गर्भ है तो एकादश उसके • पति/पुरुष का पुत्र सुख/सन्तति विस्तार। अतः एकादश के सन्दर्भ में पञ्चम तथा पश्चम के सन्दर्भ में एकादश स्थान का विचार उचित एवं अनिवार्य है। 【 पचि विस्तारे→पञ्च→पञ्चम= उदर ।】 √•जिसका विस्तार हो, जो फैले, वह पञ्चम है। उदर फैलता है। स्त्री के गर्भ में स्थित भ्रूण जैसे-जैसे बढ़ता है वैसे-वैसे उसका पेट फैलता है। इसलिये गर्भ/ पेट को पश्चम कहते हैं। अनेकों सन्तानें होती हैं, सन्तानों का फैलाव होता है। इसलिये सन्तान पञ्चम है। सम् + तनु विस्तारे →