ॐ अस्य श्री नृसिंहमन्त्रस्य प्रहराऋषिः। शिरसि। अनुष्टुभ् छन्दः मुखे।जीवो बीजं ह्रदि।
अनन्तशक्तिः नाभौ। परमात्मा कीलकम् गुह्ये। श्रीनृसिंहदेवता प्रीत्यर्थे जप विनियोगः।
शत्रुहानिपरोमोक्षमर्थदिव्य न संशयः । अथदिग्बंधः । पूर्वेनृसिंह रक्षेश्च ईशान्ये उग्ररुपकम् ।
उत्तरे वज्रको रक्षेत् वायव्यांच महाबले । पश्चिमे विकटो रक्षेत् नैऋत्यां अग्निरुपकम् ।
उत्तरे वज्रको रक्षेत् वायव्यांच महाबले । पश्चिमे विकटो रक्षेत् नैऋत्यां अग्निरुपकम् ।
दक्षिणे रौद्र रक्षेच्च घोररुपंच अग्नेय्याम् । ऊर्ध्व रक्षेन्महाकाली अधस्ताद्दैत्यमर्दनः ।
एताभ्यो दशदिग्भ्यश्च सर्वं रक्षेत् नृसिंहकः । ॐ क्रीं छुं नृं नृं र्हींर र्हीं् रुं रुं स्वाहा ॥
ॐ शत्रुचूर्णाय नमः । ॐ भवहारणाय नमः । ॐ शोकहराय नमः । ॐ नरकेसरी वुं हुं हं फट् स्वाहा ।
ॐ छुं छुं नृं नृं रुं रुं स्वाहा । ॐ वुं वुं वुं दिग्भ्यः स्वाहा । नृसिंहाय नमः ।
ॐ नृं नृं नृं तर्जनीभ्यां नमः । ॐ रां रां रां मध्यमाभ्यां नमः । ॐ श्रां श्रां श्रां अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ व्रां व्रां व्रां ह्रदयाय नमः । र्हां् र्हां् र्हां् शिरसे स्वाहा । ॐ क्लीं क्लीं क्लीं शिखायै वौषट् ।
ॐ ग्रां ज्रां ज्रां कवचाय हुम् । ॐ श्रीं श्रीं श्रीं नेत्रत्रयायै वौषट् । ॐ आं आं अस्त्राय फट् ।
ॐ नरकेसरी रां रां खं भीं नृसिंहाय नमः । अकारः सर्व संराजतु विश्वेशी विश्वपूजितो ।
ॐ विश्वेश्वराय नमः । ॐ र्होंी स्त्रां स्त्रां स्त्रां सर्वदेवेश्वरी निरालम्बनिरंजननिर्गुणसर्वश्वैव तस्मै नमस्ते ।
ॐ र्हांे र्हांण र्हांज हरित क्लीं क्लीं विष सर्वदुष्टानां च मर्दनं दैत्यापिशाचाय अन्याश्च महाबलाय नमः ।
ॐ ज्रां ज्रां ज्रां ज्रां सर्वजगन्नाथ जगन्महीदाता जग्न्महिमा जगव्यापिने देव तस्मै नमो नमः ।
ॐ श्री श्रीं श्री श्रीधर सर्वेश्वर श्रीनिवासिने । ॐ आं आं आं अनन्ताय अनन्तरुपाय विश्वरुपाय नमः ।
ॐ श्रीनृसिंहाय उद्विघ्नाय विकटोग्रतपसे लोभमोहविवर्जितं त्रिगुणरहितं उच्चाटनभ्रमितं सर्वमायाविमुक्तं सिंह रागविवर्जित विकटोग्र – नृसिंह नरकेसरी ॥
ॐ नमो भगवते श्री लक्ष्मीनृसिंहाय ज्वाला मालाय दीप्तदंष्ट्राकरालाय ज्वालाग्निनेत्रायसर्वक्षोघ्नाय सर्वभूतविनाशाय सर्व विषविनाशाय सर्व व्याधिविनाशनाय हन हन दह दह पच पच वध वध बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष मां हुं फट् स्वाहा ॥
नृसिंह कवच के साथ-साथ यदि शुक्र स्तोत्र, विपरीत महाविधा स्तोत्र, लक्ष्मी नारायण कवच का यदि पाठ किया जाए तो, नृसिंह कवच का बहुत लाभ मिलता है, मनोवांछित कमना पूर्ण होती है, यह स्तोत्र शीघ्र ही फल देने लग जाता है, यदि साधक नृसिंह साधना करने की इच्छा रखते है, तो उन्हें मंत्र साधना विधान के अनुसार नृसिंह साधना कर
नृसिंह कवच | Narsingh Kavach
विष्णु भगवान के सभी अवतारों में नृसिंह अवतार बहुत ही उग्र और भयावह माना गया है। उनके स्मरण मात्र से ही शरीर में बिजली सी कौंध जाती है, सभी प्रकार की नकारात्मक उर्जा दूर होने लगती है। भुत-प्रेत, पिशाच आदि दुष्ट शक्तियां भगवान नृसिंह का नाम सुनने मात्र से ही भाग जाती हैं। नृसिंह कवच भगवान नृसिंह कवच का ही स्वरुप है, यह एक ढाल की तरह होता है, इस कवच का पाठ करने से, भगवान नृसिंह सभी प्रकार से रक्षा करते है।
कई बार देखा गया है, कि कुछ लोगों को प्रेत बाधा, तंत्र बाधा, नज़र दोष हो जाता है। ऐसी पीड़ा को दूर करने के लिए हम कई तांत्रिक, मान्त्रिक, और ओझाओं के पास जाते है, फिर भी हमें लाभ नही मिलता। ऐसी स्तिथि को दूर करने की लिए नृसिंह कवच का पाठ करना बहुत ही लाभदायक माना गया है।
यदि किसी प्रतियोगिता में जा रहे है, या किसी बड़ी परीक्षा देने जा रहे है, और आपको भय है कि कही मुझे असफलता न प्राप्त हो, तब भी आप नृसिंह कवच पाठ करकें अपने घर से जाए और देखें सफलता आपके कदम चूमेगी।
नृसिंह कवच पाठ विधि:
नृसिंह कवच का पाठ किसी भी गुरुवार के दिन, सुबह के समय (4:30-6:00am) या रात के समय (9:15-10:30Pm) के बीच, जिस समय आपका मन अंदर से शांत हो, उस समय पीले ऊनी आसन पर, पूर्व या दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके बैठे, अपने समाने नृसिंह भगवान की मूर्ति या चित्र स्थापित करें, भगवान के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाये और अपने गले में नृसिंह गुटिका धारण करकें, अपने गुरु, पितृ, इष्ट ओर भगवान नृसिंह से, अपने कार्य में पूर्ण सफलता के लिए प्रार्थना करें, कामना बोलते हुए नृसिंह भगवान के चरणों में कोई भी पीले पुष्प चढायें, उनके चरणों में सिंदूर से टीका लगायें, उस टीके को फिर अपने मस्तक पर लगाकर, सीधे हाथ में जल लेकर नृसिंह कवच का विनयोग करें, विनियोग के बाद जल भूमि पर छोड़ दे।
इसके अपने सर पर सीधा हाथ रख कर, नृसिंह कवच को उच्च स्वर में बोलते हुए, 9 माला पाठ 21 दिन तक करें, ऐसा करने से, भगवान नृसिंह सभी दृष्टियों से रक्षा करते है, समस्त प्रकार के ग्रह पीड़ा, तंत्र दोष, शत्रु, भुत-प्रेत पीड़ा, आदि से रक्षा होती है।
नृसिंह कवच के लाभ:
नृसिंह कवच से सभी नवग्रह का दोष, कालसर्प दोष, पितृ दोष, दारिद्र दोष, मांगलिक दोष आदि समाप्त होते है।
भूत-प्रेत आदि बाधाओं से मुक्ति मिलती है, नकारात्मक शक्तिओं का नाश हो जाता है।
मनुष्य की सभी मनोकामना सिद्ध होती है।
नृसिंह कवच से विद्द्यार्थियों को परीक्षा में निश्चित ही सफलता मिलती है।
5 माला पाठ नित्य करने से नि:सन्तान को सन्तान प्राप्ति के द्वार खुल जाते है।
नृसिंह कवच के 11 माला पाठ 21 दिन तक करने से सरकारी कामो में सफलता प्राप्त होती है।
घर, दुकान या ऑफिस में कोई भय हो तो, सभी प्रकार के उपद्रव शांत हो जाते है।
कवच पहने हुए व्यक्ति के उपर शत्रु के द्वारा किये हुए मारण, मोहन, उच्चाटन आदि तंत्र दोष कार्य ही नही करते।
ईडी, सीबीआई, सीआईडी जैसे यदि बुरे केस लग जाते तो, अवश्य ही नृसिंह कवच का पाठ करें।
इसके पाठ से चुनाव में विजय प्राप्त होती है, सामाजिक सम्मान प्राप्त होता है।
विनयोग: सीधे हाथ में जल लेकर पढ़े।
ॐ अस्य श्रीलक्ष्मीनृसिंह कवच महामंत्रस्य ब्रह्माऋिषः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीनृसिंहोदेवता, ॐ क्षौ बीजम्, ॐ रौं शक्तिः, ॐ ऐं क्लीं कीलकम्, मम सर्वरोग, शत्रु, चौर, पन्नग, व्याघ्र, वृश्चिक, भूत–प्रेत, पिशाच, डाकिनी–शाकिनी, यन्त्र मंत्रादि, सर्व विघ्न निवाराणार्थे श्री नृसिहं कवच महामंत्र जपे विनयोगः। जल भूमि पर छोड़ दें।
अथ ऋष्यादिन्यास:
ॐ ब्रह्माऋषये नमः शिरसि।
ॐ अनुष्टुप् छन्दसे नमो मुखे।
ॐ श्रीलक्ष्मी नृसिंह देवताये नमो हृदये।
ॐ क्षौं बीजाय नमोनाभ्याम्।
ॐ शक्तये नमः कटिदेशे।
ॐ ऐं क्लीं कीलकाय नमः पादयोः।
ॐ श्रीनृसिंह कवचमहामंत्र जपे विनयोगाय नमः सर्वाङ्गे॥
अथ करन्यास:
ॐ क्षौं अगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ प्रौं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ ह्रौं मध्यमाभयां नमः।
ॐ रौं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ ब्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ जौं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।
अथ हृदयादिन्यास:
ॐ क्षौ हृदयाय नमः।
ॐ प्रौं शिरसे स्वाहा।
ॐ ह्रौं शिखायै वषट्।
ॐ रौं कवचाय हुम्।
ॐ ब्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ जौं अस्त्राय फट्।
नृसिंह ध्यान:
ॐ सत्यं ज्ञान सुखस्वरूप ममलं क्षीराब्धि मध्ये स्थित्।
योगारूढमति प्रसन्नवदनं भूषा सहस्रोज्वलम्।
तीक्ष्णं चक्र पीनाक शायकवरान् विभ्राणमर्कच्छवि।
छत्रि भूतफणिन्द्रमिन्दुधवलं लक्ष्मी नृसिंह भजे॥
कवच पाठ
ॐ नमोनृसिंहाय सर्व दुष्ट विनाशनाय सर्वंजन मोहनाय सर्वराज्यवश्यं कुरु कुरु स्वाहा।
ॐ नमो नृसिंहाय नृसिंहराजाय नरकेशाय नमो नमस्ते।
ॐ नमः कालाय काल द्रष्ट्राय कराल वदनाय च।
ॐ उग्राय उग्र वीराय उग्र विकटाय उग्र वज्राय वज्र देहिने रुद्राय रुद्र घोराय भद्राय भद्रकारिणे ॐ ज्रीं ह्रीं नृसिंहाय नमः स्वाहा !!
ॐ नमो नृसिंहाय कपिलाय कपिल जटाय अमोघवाचाय सत्यं सत्यं व्रतं महोग्र प्रचण्ड रुपाय।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ॐ ह्रुं ह्रुं ह्रुं ॐ क्ष्रां क्ष्रीं क्ष्रौं फट् स्वाहा।
ॐ नमो नृसिंहाय कपिल जटाय ममः सर्व रोगान् बन्ध बन्ध, सर्व ग्रहान बन्ध बन्ध, सर्व दोषादीनां बन्ध बन्ध, सर्व वृश्चिकादिनां विषं बन्ध बन्ध, सर्व भूत प्रेत, पिशाच, डाकिनी शाकिनी, यंत्र मंत्रादीन् बन्ध बन्ध, कीलय कीलय चूर्णय चूर्णय, मर्दय मर्दय, ऐं ऐं एहि एहि, मम येये विरोधिन्स्तान् सर्वान् सर्वतो हन हन, दह दह, मथ मथ, पच पच, चक्रेण, गदा, वज्रेण भष्मी कुरु कुरु स्वाहा।
ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्ष्रीं क्ष्रीं क्ष्रौं नृसिंहाय नमः स्वाहा।
ॐ आं ह्रीं क्ष्रौं क्रौं ह्रुं फट्।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन नृसिंहाय मम विजय रुपे कार्ये ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यमेनकार्य शीघ्रं साधय साधय एनं सर्व प्रतिबन्धकेभ्यः सर्वतो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा।
ॐ क्षौं नमो भगवते नृसिंहाय एतद्दोषं प्रचण्ड चक्रेण जहि जहि स्वाहा।
ॐ नमो भगवते महानृसिंहाय कराल वदन दंष्ट्राय मम विघ्नान् पच पच स्वाहा।
ॐ नमो नृसिंहाय हिरण्यकश्यप वक्षस्थल विदारणाय त्रिभुवन व्यापकाय भूत–प्रेत पिशाच डाकिनी–शाकिनी कालनोन्मूलनाय मम शरीरं स्तम्भोद्भव समस्त दोषान् हन हन, शर शर, चल चल, कम्पय कम्पय, मथ मथ, हुं फट् ठः ठः।
ॐ नमो भगवते भो भो सुदर्शन नृसिंह ॐ आं ह्रीं क्रौं क्ष्रौं हुं फट्।
ॐ सहस्त्रार मम अंग वर्तमान ममुक रोगं दारय दारय दुरितं हन हन पापं मथ मथ आरोग्यं कुरु कुरु ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रुं ह्रुं फट् मम शत्रु हन हन द्विष द्विष तद पचयं कुरु कुरु मम सर्वार्थं साधय साधय।
ॐ नमो भगवते नृसिंहाय ॐ क्ष्रौं क्रौं आं ह्रीं क्लीं श्रीं रां स्फ्रें ब्लुं यं रं लं वं षं स्त्रां हुं फट् स्वाहा।
ॐ नमः भगवते नृसिंहाय नमस्तेजस्तेजसे अविराभिर्भव वज्रनख वज्रदंष्ट्र कर्माशयान् रंधय रंधय तमो ग्रस ग्रस ॐ स्वाहा।
अभयमभयात्मनि भूयिष्ठाः ॐ क्षौम्।
ॐ नमो भगवते तुभ्य पुरुषाय महात्मने हरिंऽद्भुत सिंहाय ब्रह्मणे परमात्मने।
ॐ उग्रं उग्रं महाविष्णुं सकलाधारं सर्वतोमुखम्।
नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्युं मृत्युं नमाम्यहम्।
।। इति नृसिंह कवच ।।
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नृसिंह जयंती का दिन बहुत खास है। इस दिन भगवान विष्णु ने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए भगवान नृसिंह का सिंहावतार लिया था। भगवान नृसिंह अत्यंत उग्र स्वरूप में दिखाई देते हैं लेकिन भक्तों के लिए विशेष रूप से उदार और दयावान हैं।
नृसिंह जयंती अगर आपने यह स्तोत्र पढ़ लिया तो आप स्वयं इसका चमत्कार महसूस करेंगे। पूरे संसार में इसे अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली स्तोत्र नहीं है।
श्री नृसिंह स्तोत्र
ब्रह्मोवाच
नतोऽस्म्यनन्ताय दुरन्तशक्तये विचित्रवीर्याय पवित्रकर्मणे।
विश्वस्य सर्ग-स्थिति-संयमान् गुणैः स्वलीलया सन्दधतेऽव्ययात्मने॥1॥
श्रीरुद्र उवाच
कोपकालो युगान्तस्ते हतोऽयमसुरोऽल्पकः।
तत्सुतं पाह्युपसृतं भक्तं ते भक्तवत्सल॥2॥
इंद्र उवाच
प्रत्यानीताः परम भवता त्रायतां नः स्वभागा।
दैत्याक्रान्तं हृदयकमलं स्वद्गृहं प्रत्यबोधि।
कालग्रस्तं कियदिदमहो नाथ शुश्रूषतां ते।
मुक्तिस्तेषां न हि बहुमता नारसिंहापरैः किम्॥3॥
ऋषय उवाच
त्वं नस्तपः परममात्थ यदात्मतेजो येनेदमादिपुरुषात्मगतं ससर्ज।
तद्विप्रलुप्तमनुनाऽद्य शरण्यपाल रक्षागृहीतवपुषा पुनरन्वमंस्थाः॥4॥
पितर ऊचुः
श्राद्धानि नोऽधिबुभुजे प्रसभं तनूजैर्दत्तानि तीर्थसमयेऽप्यपिबत्तिलाम्बु।
तस्योदरान्नखविदीर्णवपाद्य आर्च्छत्तस्मै नमो नृहरयेऽखिल धर्मगोप्त्रे॥5॥
सिद्धा ऊचु:
यो नो गतिं योगसिद्धामसाधुरहारषीद्योगतपोबलेन।
नानादर्पं तं नखैर्निर्ददार तस्मै तुभ्यं प्रणताः स्मो नृसिंह॥6॥
विद्याधरा ऊचु:
विद्यां पृथग्धारणयाऽनुराद्धां न्यषधदज्ञो बलवीर्यदृप्तः।
स येन संख्ये पशुवद्धतस्तं मायानृसिंहं प्रणताः स्म नित्यम्॥7॥
नागा ऊचु:
येन पापेन रत्नानि स्त्रीरत्नानि हृतानि नः।
तद्वक्षःपाटनेनासां दत्तानन्द नमोऽस्तु ते॥8॥
मनव ऊचु:
मनवो वयं तव निदेशकारिणो दितिजेन देव परिभूतसेतवः।
भवता खलः स उपसंहृतः प्रभो कर वाम ते किमनुशाधि किंकरान्॥9॥
रजापतय ऊचु:
प्रजेशा वयं ते परेशाभिसृष्टा न येन प्रजा वै सृजामो निषिद्धाः।
स एव त्वया भिन्नवक्षाऽनुशेते जगन्मंगलं सत्त्वमूर्तेऽवतारः॥10॥
गन्धर्वा ऊचु:
वयं विभो ते नटनाट्यगायका येनात्मसाद् वीर्यबलौजसा कृताः।
स एव नीतो भवता दशामिमां किमुत्पथस्थः कुशलाय कल्पते॥11॥
चारणा ऊचु:
हरे तवांग्घ्रिपंकजं भवापवर्गमाश्रिताः।
यदेष साधु हृच्छयस्त्वयाऽसुरः समापितः॥12॥
यक्षा ऊचु:
वयमनुचरमुख्याः कर्मभिस्ते मनोज्ञैस्त इह दितिसुतेन प्रापिता वाहकत्वम्।
स तु जनपरितापं तत्कृतं जानता ते नरहर उपनीतः पंचतां पंचविंशः॥13॥
किंपुरुषा ऊचु:
वयं किंपुरुषास्त्वं तु महापुरुष ईश्वरः।
अयं कुपुरुषो नष्टो धिक्कृतः साधुभिर्यदा॥14॥
वैतालिका ऊचु:
सभासु सत्रेषु तवामलं यशो गीत्वा सपर्यां महतीं लभामहे।
यस्तां व्यनैषीद् भृशमेष दुर्जनो दिष्ट्या हतस्ते भगवन् यथाऽऽमयः॥15॥
किन्नरा ऊचु:
वयमीश किन्नरगणास्तवानुगा दितिजेन विष्टिममुनाऽनुकारिताः।
भवता हरे स वृजिनोऽवसादितो नरसिंह नाथ विभवाय नो भव॥16॥
विष्णुपार्षदा ऊचु:
अद्यैतद्धरिनररूपमद्भुतं ते दृष्टं नः शरणद सर्वलोकशर्म।
सोऽयं ते विधिकर ईश विप्रशप्तस्तस्येदं निधनमनुग्रहाय विद्मः॥17॥
॥ इति श्रीमद्भागवतान्तर्गते सप्तमस्कन्धेऽष्टमध्याये नृसिंहस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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